मौके पर मिली जानकारी के अनुसार सूरत से वापी तक सड़क का ठेका स्काईलार्क नामक कंपनी को दिया गया है। जबकि बरसाती पानी की निकासी का ठेका एलएन मालवीय नामक कंपनी को दिया गया है, जिसका कार्यालय धरमपुर चौकड़ी के पास है। अब एक बड़ा परिवर्तन होने लगा है, जहां एक स्थान पर वर्षा जल निकासी के लिए धातु का उपयोग किया जा रहा है, जबकि दूसरे स्थान पर फाइबरग्लास का उपयोग किया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार, वलसाड शुगर फैक्ट्री के पास हाईवे के पास बारिश के पानी की निकासी के लिए सीवर लाइन का निर्माण किया जा रहा है। जिसमें जीएफआरपी छड़ का उपयोग किया जा रहा है, जीएफआरपी छड़ को ग्लास फाइबर छड़ भी कहा जाता है। अब इसी राजमार्ग पर डुंगरी और रोला गांवों के पास पक्की सड़कें बनाई जा रही हैं। इसलिए अन्य स्थानों पर धातु की छड़ों का उपयोग किया जा रहा है। धातु की छड़ों की गुणवत्ता इतनी निम्न और कमजोर है कि जरा सा मोड़ने पर ही छड़ें टूट जाती हैं। कंपनी अलग-अलग मानक अपनाते हुए मनमाने ढंग से दोनों साइटों के बीच पांच से दस किलोमीटर की दूरी पर सीवर लाइन का निर्माण कर रही है।
जानकारी के अनुसार स्काईलार्क को 310 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया है। तो सवाल यह उठता है कि क्या इस तरह से सड़क बनाने के लिए टेंडर प्रक्रिया के समय अलग-अलग मापदंड तय किए गए थे? लोग एक के साथ आम और दूसरे के साथ गूटली की तरह व्यवहार करने की एसी मनस्वी नीति पर सवाल उठा रहे हैं, तथा विशेष रूप से गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
और यह भो सवाल उठता है कि क्या भारतीय सड़क एवं राजमार्ग प्राधिकरण के नियमों का पालन हो रहा है? इस प्रकार की घुप्पलबाजी को चलाने के लिए कौन जिम्मेदार है, जिस कंपनी को बरसाती जल निकासी का ठेका मिला था? कंपनी की तफ्तीश करने की मांग की जा रही है।